गांव के चरवाहे कर रहे MNCs के मैनेजर से भी ज्यादा कमाई, जानें कैसे
नई दिल्ली. क्या आप ये सोच सकते हैं कि किसी गांव के चरवाहे एक मल्टीनेशनल कंपनी के मैनेजर से भी ज्यादा कमाई कर सकते हैं…? आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जहां के चरवाहे बंपर कमाई कर रहे हैं. आपको बता दें साल के 6 महीने में इनकी कमाई काफी अच्छी होती है. बता दें यूपी, हरियाणा (Haryana) और उतराखंड के गांव में भी इस तरह के कई
जोधपुर में ढाणी गांव के हैं यह चरवाहे
जोधपुर का ढाणी गांव चरवाहों के लिए मशहूर है. इस गांव में ज़्यादातर परिवार गुर्जर समुदाय के हैं. यह लोग भेड़-बकरियां चराने का काम करते हैं. पीढ़ियों से इस गांव में यही काम होता आया है. इसी गांव के शंकर आजकल अपने परिवार के साथ भेड़ों को लेकर राजस्थान से बाहर निकले हैं.
शंकर बताते हैं, “पानी की कमी और उसके चलते हरे चारे की कमी हो जाती है. इस वजह से सेठ (भेड़ के मालिक) अपनी भेड़ों को दिवाली के बाद हम लोगों के हवाले कर देते हैं. हम भेड़ों को लेकर हरियाणा के रास्ते यूपी और उतराखंड में भेड़ चराते हैं. इस तरह से साल के 6 महीने तक हम इसी तरह से घूमते रहते हैं. और फिर सावन के महीने में वापस जोधपुर पहुंच जाते हैं.”
500 रोज़ाना मिलते हैं रुपए
650 किमी का सफर तय कर इन दिनों गाज़ियाबाद में रह रहे शंकर ने बताया, “एक सेठ के पास हज़ारों की संख्या में भेड़ होती हैं. 100 भेड़ का एक रेवड़ होता है जब हम भेड़ लेकर निकलते हैं तो हमे 100 भेड़ के 500 रुपये मेहनताने के रूप में मिलते हैं. एक चरवाहे का परिवार 4 से 5 हज़ार भेड़ लेकर चलता है. घर का मुखिया (पुरुष) और महिलाएं-बच्चे भी भेड़ों की देखभाल करते हुए चलते हैं.इस दौरान तीन बार भेड़ों के ऊपर से ऊन भी निकाली जाती है.”
सफर के दौरान गांवों में ऐसे मिल जाता है फ्री खाना
एक किसान ने बात करने पर बताया कि गांवों में किसान रेवड़ वालों का इंतज़ार करते हैं जब यह लोग हजारों भेड़ लेकर गांवों से गुजरते हैं तो किसान चाहता है कि यह लोग अपनी भे़ड़ को उनके खेतों में रोकें. जिसे भेड़ों के ‘मल’ के रूप में खेतों को खाद मिल जाए. इसके लिए खेत का मालिक चारवाहे और उसके परिवार के लिए खाने का इंतज़ाम करता है. जब तक चरवाहा गांव में रुकता है तो उसे खाना फ्री दिया जाता है.