दुआओं ने जिंदा रखा है साहब,अंग्रेजी हुकूमत तो ऐसी चल रही है,कि जवान आत्महत्या को गले लगा रहे,सोचा कुछ लाइन लिखकर याद दिला दू आपको, शायद दया आ जाए जवानों पर,कॉन्स्टेबल ने शासन-प्रशासन से की अपील।
कांस्टेबल प्रदीप दिवाकर के द्वारा टि्वटर अकाउंट के माध्यम से शासन,प्रशासन से लगातार हो रहे जवानों के आत्महत्या पर समाधान के लिए श्रीमान पुलिस महानिदेशक महोदय, छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री और गृह मंत्री तथा कैबिनेट मिनिस्टर माननीय टी एस सिंह देव, माननीय गुरु रुद्र कुमार और माननीय शिव डहरिया से अपील की गई।
फोर्स विभाग में पुलिस जवानों के द्वारा लगातार आत्महत्याएं की जा रही है, लेकिन शासन और प्रशासन के द्वारा आत्महत्याओं को रोकने के लिए किसी प्रकार कि कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
शासन और प्रशासन अच्छे से जानते हैं कि एक पुलिस जवान आत्महत्या क्यों करता है,फिर भी स्वार्थ और राजनीतिक लाभ के कारण “आत्महत्या” विषय पर मौन धारण किया जाता है हमेशा की तरह।
कांस्टेबल प्रदीप दिवाकर ने कहा कि पुलिस जवान आत्महत्या करता है, तो न्यूज चैनल पर आत्महत्या का कारण अधिकतर पारिवारिक कारण बताया जाता है लेकिन आत्माहत्या का मुख्य कारण या जड़ भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 है,जिसमें भारतीय नाम मात्र का शब्द है,ये ब्रिटिश पुलिस अधिनियम 1861 है,जो ब्रिटिश रूल भारत आजादी 15 अगस्त 1947 के 73 साल बाद भी चल ही रही है ।
ब्रिटिश रूल भारतीय जनता और पुलिस कर्मचारियों को कंट्रोल करने और दमन नीतियों के तहत बनाया गया था, जो आज भी चल रही है ।
नेता प्रतिपक्ष माननीय धरमलाल कौशिक जी ने भी बयान में कहा है कि हमारे खुद के कायदे कानून होने चाहिए,ब्रिटिश रूल में बदलाव की सख्त आवश्यकता है ।
कॉन्स्टेबल प्रदीप दिवाकर ने कहा कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है, जो जवान आत्महत्या करते हैं वो अपने परिवार को दूसरों के भरोसे छोड़कर गलत करते हैं,किसी भी परिस्थिति में आत्महत्या सही नहीं हैं ।
पुलिस कर्मचारी इंसान हैं रोबोट नहीं है जिससे 24 घंटे के एग्रीमेंट पर कार्य लिया जाता है, कभी-कभी विषम परिस्थितियों में लगातार 36 घंटे से अधिक भी ड्यूटी करना पड़ता है,
दिनभर 12 घंटा ड्यूटी करने के बाद रात्रि में 11:00 से 5:00 अगर जवान गस्त करता है तो कब सोएगा,और लगातार रोटेशन चलने से तबीयत हमेशा खराब रहती है,तबीयत खराब होने पर छुट्टी भी नहीं मिलती है, क्योंकि पुलिस कर्मचारी मानव श्रेणी में नहीं आते हैं ब्रिटिश रूल के मतानुसार ।
24 घंटे के एग्रीमेंट पर कार्य करने वाली पुलिस का पूरा समय तो शासन व प्रशासन के कार्यों में ड्यूटी में चला जाता है तो परिवार के लिए उसके पास समय ही कहां है ?
वेतन बहुत कम है और कल्पनिक भत्ते दिए जा रहे हैं आर्थिक तंगी के कारण आधारभूत सुविधाओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती है,2-2 लोन लेकर सभी जवान कर्जे में डूबे हैं,आवश्यकताओं की पूर्ति ना होने पर भी परिवारिक वाद विवाद होते रहते हैं।
अगर पुलिस जवान ड्यूटी करने के बाद घर पर भी आराम कर रहा हो तो या छुट्टी पर गया हो तो भी डयूटी ही माना जायेगा क्योकि जरूरत पड़ने पर फोन करके बुला लिया जाता है।
समय पर छुट्टी ना मिलना भी एक बहुत बड़ा कारण है आत्महत्या का, क्योंकि परिवारिक वाद-विवाद होते रहता है।
पुलिस जवान जो कार्य नहीं करना चाहते क्योंकि जनरल ड्यूटी के लिए भर्ती हुए होते हैं लेकिन अर्दली के कार्यों पर लगा दिया जाता है जिससे मानसिक रूप से प्रताड़ित होते हैं, क्योंकि अर्दली कार्यों के लिए उस पर दबाव डाला जाता है ।
हाई कोर्ट अधिवक्ता योगेश्वर शर्मा ने कहा कि पुलिस जवान अपनी समस्याओं को लेकर कुछ नहीं कर पाता है, अनुशासन के कारण,जिसके कारण मन ही मन में घुटता रहता है, और विडंबना की बात यह है कि जिस अधिकारी के प्रताड़ना के कारण उच्च अधिकारी को शिकायत करता है वही अधिकारी उसके प्रताड़ना का कारण होता है,जिससे पुलिस जवान के पास कोई रास्ता शेष नहीं रहता और आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाता है।
सभी पहलुओं को ध्यान रखते हुए भारतीय पुलिस अधिनियम 1861,में संशोधन करके “फ्रेंडली पुलिस एक्ट बनाया जाए जिसकी व्यवहार और प्रकृति फ्रेंडली हो” ।